*पूर्वाञ्चल की अवधारणा—एक रणनीतिक भूल*
एक राज्य या संस्कृति के तौर पर पूर्वाञ्चल की अवधारणा सतही तौर पर बहूतों को आकर्षक लग सकता है पर रणनीतिक और व्याहारिक नज़रिये से यह भारी गलती ही साबित होगी। रणनीति यह कहती है कि भोजपुरी पहिचान व राज्य का मुद्दा यहाँ के साथ ही अंतर्राष्ट्रीय संबन्धों के लिहाज से भी काफी महत्वपूर्ण है। नेपाल के 10 जिलों में (4 जिलों में खाँटी) भोजपुरी बोली जाती है। फिर मारिशस, सूरीनाम, फ़िजी आदि 14 देशों का सांस्कृतिक आधार ही भोजपुरी है,
भाषा भले ही कुछ भी हो। अतः भोजपुरी भारत की अंतर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठा का महत्वपूर्ण घटक है। भोजपुरी राज्य, पहिचान व संस्कृति को मान्यता व प्रोत्साहन देने से भारत के प्रति इन 14 देशों का लगाव व समर्थन बढ़ेगा तथा दीर्घकालीन परोक्ष अंतर्राष्ट्रीय लाभ भी होगा।
पूर्वाञ्चल बनाने से क्या मिलना है--कुछ की राजनीतिक आकांक्षा व जिद्द की तृप्ति हो जाएगी या इसलिए कि पूर्वाञ्चल शब्द कहने में अच्छा लगता है, इसलिए भोजपुरी की उपेक्षा मूर्खता ही होगी और हम अपने देश और जनता को एक वैश्विक अवसर से वंचित करेंगे। हमें इस सीमित सोच व नादानी से बचना चाहिए। पूर्वांचल किसी भी तरह भारत के पूर्वी हिस्से में नहीं आता। फिर इलाहाबाद व आसपास के क्षेत्र तो अवधी में आते हैं। वहाँ की जनता लखनऊ-कानपुर से अलग क्यों होना चाहेगी? जबकि बिहार के नौ भोजपुरी जिलों की जनता भोजपुरी राज्य
में शामिल होने को तैयार है। कुल मिलाकर पूर्वांचल एक खोखली धारणा ही है।
हाँ इतना जरूर है कि भोजपुरी राज्य के नाम व राजधानी का मुद्दा भी जनता जनार्दन के कालगत रुझान पर छोड़ देना चाहिए। वैसे तो इसके लिए भोजप्रांत, भोजभूमि, भोजखण्ड, भोजांचल, काशीराज जैसे कई अच्छे नाम सामने है।
जब 13 जिलों और 60 लाख की आबादी पर हिमाचल और उत्तराखंड बनाए जा सकते हैं, 18 जिलों पर झारखंड बन सकता है तो 27 जिलों के बृहत्तर क्षेत्र पर भोजपुरी राज्य क्यों नहीं?
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प्रोफेसर
आर पी सिंह
वाणिज्य विभाग, दी द उ गोरखपुर विश्वविद्यालय।
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