श्रीलंका में सिंहलियों और तमिलों के बीच; भारत बनाम चीन; रूस, बेलारूस व उत्तर कोरिया बनाम यूक्रेन; अज़रबैजान बनाम आर्मेनिया; हमास बनाम इज़राइल; हिज़बुल्लाह व लेबनान बनाम इज़राइल; हुतिस बनाम इज़राइल और अमेरिका; ईरान बनाम इज़राइल; सीरिया बनाम इज़राइल; अमेरिका बनाम मैक्सिको; अमेरिका बनाम कनाडा; अमेरिका बनाम डेनमार्क; पाकिस्तान संकट; बांग्लादेश संकट; म्यांमार संकट; ऑपरेशन सिन्दूर; चीन बनाम ताइवान; अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका में चल रहे संकट और अब कम्बोडिया बनाम थाईलैंड—आज पूरा विश्व दो राजनेताओं की दुराकांक्षाओं के कारण अबाध विश्व युद्ध के कगार पर खड़ा है। एक ओर रूस के आजीवन राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की पुराने USSR को पुन: स्थापित करने आकांक्षा तो दूसरी ओर नोबेल शांति पुरस्कार की प्रबल व्यक्तिगत इच्छा पाले पूरी दुनिया की पुलिसगिरी में मशगूल अमरीका ग्रेट अगैन के संकल्पी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प । आज ये दोनों देश जिस तरह दुनिया को अपने ढंग से चलाना चाहते है उनमें से हरेक की अपनी नीतियों में ही विरोधाभास है।
पुतिन नेटो को रूस के इर्द-गिर्द आने और रूस की घेराबंदी से रोकने चाहते हैं और ऐसा सोचने में कोई गलती नहीं है। लेकिन वह ईरान, तुर्किए, उत्तरी कोरिया जैसे हठधर्मी देशों की तरफदारी करे यह भी तो ठीक नहीं है। और इधर ट्रम्प अमेरिकी राष्ट्रवादी हितों को सर्वोपरि करने में स्वयं एक देश द्वारा दूसरे देशों के ऊपर टैरिफ, आप्रवासन, हथियार आपूर्ति, आर्थिक व अन्य प्रतिबंध, अन्तराष्ट्रीय एजेंसियों, एक देश को दूसरे के खिलाफ लड़ाने जैसे उपायों को अमेरिकी राष्ट्रवादी स्वार्थसाधन के हथियार के तौर इस्तेमाल दुनिया के माहौल को और अधिक जटिल ही बना रहा है। ट्रम्प की कार्रवाइयों की वैधता पर उनके देश के बाहर और भीतर सवाल उठना लाज़मी है। दोनों देश अनेक बार अपने राष्ट्रीय स्वार्थसाधन के लिए मानवता के लिए खतरनाक विचारधाराओं व संगठनों को पालने और समर्थन देने से हिचकते नहीं हैं । और जब संकट दुनिया के साथ-साथ उनके अपने देश के लिए भी खतरनाक होने लगता है तब दूसरे देशों से सहानुभूति, सहयोग व समर्थन मांगते हैं वह भी अपनी शर्तों पर।
दुनिया भर में संघर्षों और रक्तपात के पीछे का मूलभूत कारक डॉगमा (जड़वाद), नकारात्मकता, कट्टरता और चरमपंथ का एक मिश्रण है, चाहे वह मजहबी, साम्प्रदायिक, जातीय या अन्य ऐसी संकीर्णताओं के उन्माद के मामले में हो।
वास्तव में, वैश्विक समस्याओं जैसे कि आतंकवाद, कट्टरपंथ, आर्थिक और वित्तीय हितों में असमानता, पृथ्वी पर या पृथ्वी से बाहर आव्रजन, प्रदूषण, प्राकृतिक आपदाएं और देशों के बीच अधिकारों के संघर्ष के लिए मार्गदर्शन और नियमन की आवश्यकता है। इनके संतुलित और समेकित समाधान सुनिश्चित करने के लिए प्राउट का यह प्रस्ताव है कि विश्व नेतृत्व को दो उपाय अवश्य सुनिश्चित करना चाहिए: एक, प्रभावी विश्व सरकार और प्रतिनिधि समानता के साथ विश्व संसद का गठन और दूसरा, पूरे ब्रह्मांड के लिए एक सामूहिक नैतिक सामाजिक व्यवस्था (मानव धर्म) होना जिससे भौगोलिक, सांस्कृतिक और व्यक्तिगत विविधता के सृजन, सम्मान, आनंद और सह-अस्तित्व का पर्याप्त दायरा हो।
किसी भी भावनाशील मन-प्रधान सत्ता जैसे मानव के अस्तित्व के लिए पर्याप्त विविधता आवश्यक है, अन्यथा केवल एक रंग में रंगी हुई एक नीरस विश्व व्यवस्था का बने रहना असंभव है। प्रभावी विश्व सरकार और विश्व संसद समाधान की दिशा में उठाए गए किसी भी कदम की स्वीकार्यता व प्रामाणिकता सभी देशों के समर्थन या बहुमत के आधार पर स्थापित करना आसान बनाएगी। इसके विपरीत संयुक्त राष्ट्र संघ तो दूसरे विश्व युद्ध के बाद से अमेरिका द्वारा संचालित कुछ देशों के हाथों में केवल एक खिलौना बनकर रह गया है। इससे विश्वयुद्ध, महाविनाश, प्रलय, आणविक तथा जैविक व अन्य महाविनाशक हथियारों की घातक प्रतिस्पर्धा जैसे संकटों से शीघ्र निपटना भी सुगम होगा।
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