Thursday 27 February 2020

चीन का वायरस कोरोना और हमारा नीतियों को रोना

#चीन का वायरस कोरोना और हमारा नीतियों को रोना#

कल तक भाजपा-आरएसएस के नेता GST और नोटबंदी पर अपने प्रधानमंत्री और उनकी टीम की प्रशंसा में कशीदे पढे जा रहे थे। अब भाजपा के एक सांसद व पूर्व केंद्रीय मंत्री डा० सुब्रमण्यम स्वामी कह रहे हैं कि GST इस सदी का सबसे बड़ा पागलपन है। आज ये लोग तीन तलाक हटाना, धारा 370 को हटाने, CAA-NRC जैसे उपायों की गली-मुहल्ले, घर-घर जाकर तारीफ़ों के पुल बांधते रहे हैं। क्या पता दो साल बाद इन्हीं में से कोई महान हस्ती कहने लगे कि ये सब इस सदी या दशक के सबसे बड़े पागलपन या मूर्खताएं हैं। बिहार में नीतीश सरकार इसकी भी शुरूआत कर ही चुकी विधानसभा में प्रस्ताव पारित कर कि बिहार में NRC लागू नहीं करेंगे। NDA के ही सांसद श्री मनोज झा भी कहते हैं कि सरकार की भाषा जिद वाली नहीं होनी चाहिए कि हम इसे वापस नहीं लेंगे।
वैसे GST के समर्थन में चाहे जितने भी कसीदे पढ़े गए हों, यह लागू ही हुआ था आधी-अधूरी, अधकचरी और अगम्भीर सोच के आधार पर। डा० सुब्रमण्यम स्वामी की टिप्पणी निराधार नहीं है। GST सिर्फ इस आधार पर सही नहीं ठहराया जा सकता कि यह बात तो कांग्रेस ने आरम्भ किया था। आजतक इसके दायरे में पेट्रोल-डीजल, शराब को लाने का साहस नहीं। सोने, हीरे-जवाहरात का ई-वे बिल बनाने में सुरक्षा की बड़ी चुनौती है। यही नहीं, एक ओर रक्षा, रेल, परिवहन, ऊर्जादि रणनीति क्षेत्रों में निजी क्षेत्रों में भागीदारी बढ़ाई जा रही है। दूसरी ओर e way bill, input tax credit, reverse charge आदि तरीकों से पारदर्शिता लाने की बात है। पर निजीकरण के दौर में इस पारदर्शिता में व्यवसायियों व व्यवसायिक प्रतिष्ठानों के साथ-साथ राष्ट्रीय सुरक्षा की जोखिम भी है। इनपुट टैक्स क्रेडिट में विलम्ब जैसे अनेकानेक और भी बातें हैं। ऐसी अनेक वजहें हैं कि कनाडा, यूरोप के देशों में इसे अपनाने के बाद पुनः बिक्री कर या वैट पर वापस लौटना पड़ा। वर्तमान में तो यह इंडोनेशिया, मलेशिया जैसे कुछ ही एशियाई देशों में यह चल पा रहा है।
पिछले पच्चीस वर्षों से हम वस्तुओं का उत्पादन हो या सेवा प्रदान करना हो भगवान के नाम पर, राम का नाम लेकर, क्वालिटी से समझौते करते रहे हैं और ज्यादातर चीनी माल बेचकर भारत माता का जयकारा करते रहे है; वंदे मातरम, राष्ट्रवाद, हिन्दुत्व, रामराज्य की ओट में राजनीतिक संरक्षण पाते रहे हैं। वैज्ञानिक व युक्ति चिंतन पर अंधविश्वास भावी रहे हैं। क्वालिटी चीन के पास खिसकती गयी, आवश्यक दवाइयां हों या इलेक्ट्रोनिक या रणनीतिक  उत्पाद हों, देश 70-80 प्रतिशत तक चीन पर निर्भर होता गया है। अर्थव्यवस्था मंदीस्फीति (stagflation) की और लुढ़क रही है 2-3 फीसदी की गिरावट तथा भरी मंहगाई की आसन्न चुनौती के साथ। अब कोरोना वायरस के खौफ ने संकट को और बढ़ा दिया है। चीन पर अतिनिर्भरता स्थिति को गंभीर बना सकती है।
 अच्छे-अच्छे उपाय भी इन नेताओं और दलों के लिए बंदर के हाथों में उस्तरा ही साबित होते रहे हैं। संवेदनशील उपायों को लागू करने से पहले नौकरशाही व पुलिस की जमीनी स्तर पर सत्यनिष्ठा व परिपक्वता को समझना जरूरी है। नीतियों को लागू करने में इस पहलू की घोर उपेक्षा होती रही है। अभी कम संवेदनशील व सीधे राष्ट्रीय के समृद्धिकारी उपायों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए, जैसे खाड़ी के आठ देशों की भांति गैर-कारपोरेट आयकर के स्थान पर भूमि मूल्यकर को अपनाना (ताकि कालेधन का एक बड़ा जरिया खत्म हो सके), आनलाइन लेनदेनों पर करों में एक तिहाई कमी, मताधिकार व जनप्रतिनिधित्व को आयु के बजाय शिक्षा से जोड़ना, उग्र राष्ट्रवाद के बजाय 'वसुधैव कुटुम्बकम व मानव धर्म' केन्द्रित रचनात्मक राष्ट्रीय जीवन को अपनाने की आवश्यकता है।

*प्रोफेसर आर पी सिंह, दी द उ गोरखपुर विश्वविद्यालय

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