Saturday 25 May 2019

#NEW GOVERNMENT: POLICY EXPECTATIONS# //नई सरकार: नीतिगत अपेक्षाएँ//

राजनीतिक पार्टियां सत्ता में आती और जाती रहती हैं; सरकारें बनती और बिगड़ती रहती हैं लेकिन कतिपय राष्ट्रहित के ऐसे मुद्दे हैं जो दीर्घकालीन प्रभाव के हैं और जिन की लगातार उपेक्षा के चलते आज भारत समय के एक विषम मोड़ पर खड़ा है। हम दुनिया के प्रगति की दौड़ में काफी पीछे हैं। यूरोप और अमेरिका को तो आज के उन्नत मुकाम पर पहुंचने के लिए दो-तीन सौ साल का समय मिला किंतु भारत के लिए वर्तमान समय काफी चुनौतीपूर्ण है। लोकसभा के चुनाव के परिणाम के बाद नयी सरकार को शुभकामनायें। इस सरकार के समक्ष कई बड़ी चुनौतियाँ मुह बाए खड़ी हैं। अर्थव्यवस्था मंदी की और लुढ़क रही 2-3 फीसदी की गिरावट के साथ। काले धन, भ्रष्टाचार का कारगर इलाज अभी बाकी है। कोई फर्क नहीं पड़ने वाला चाहे सत्ता में कोई बैठा हो, यदि व्यवस्था को दीमक की भांति खोखला कर रहे इन मुद्दों का समाधान नहीं हुआ। नोटबंदी और बेनामी भू-संपत्ति नियंत्रण जैसे उपाय तो बचकाने ही साबित होते रहे हैं। इन से न तो काले धन की समस्या कम होने वाली है न भ्रष्टाचार, न आतंकवाद को कम किया जा सकता है और न तीव्र व स्थिर विकास को सुनिश्चित किया जा सकता है। नोटबंदी और जमीन की सीलिंग को तो पूर्व में कांग्रेस की सरकारों द्वारा अपनाए गए। और मोदीजी की नोट बंदी तथा बेनामी संपत्ति के उपाय तो प्रकारांतर से कांग्रेस की परंपरा के विस्तार मात्र है। जीएसटी अवश्य समयानुरूप कदम है।
काले धन और भ्रष्टाचार के समाधान की वास्तव में यदि मंशा है तो सरकार को सात काम अवश्य करने होंगे:
1) व्यक्तियों व सहकारी समितियों तथा गैर कंपनी संस्थाओं पर आयकर समाप्त कर देना होगा, इससे काले धन व भ्रष्ट्चार का सबसे बड़ा जरिया ही समाप्त हो जाएगा। और जो धन अनाप-शनाप के कार्यों तथा खर्चीली पार्टियों में अधिकारियों-नेताओं को खुश करने पर खर्च होता है, उसका उत्पादक उपयोग होने से उत्पादन बढ़ेगा और बिना कोई कर बढ़ाए ही अन्य प्रकार के करों से वसूली हो जाएगी, मुख्यतः जीएसटी, सीमा कर और LVT से कलेक्शन स्वत: बढ़ जाएगा; तथा रेवेन्यू कलेक्शन अधिक बढ़ने पर कंपनियों पर भी आयकर समाप्त किया जाना बेहतर होगा।
नीतिसार है: अर्जित आय पर आयकर समाप्त कर दें ताकि कालाधन बाहर आकर उत्पादन व समृद्धि में लगे। उत्पादन व अर्जन नहीं, उपभोग के बिन्दु पर कर लगे, हस्तांतरण पर शुल्क और प्रदूषण के बिन्दु पर अर्थदण्ड।
2) जमीन की हदबंदी के कानूनों को भूमि मूल्य कर [Land value tax (एलवीटी)] से प्रतिस्थापित कर देना होगा। पूर्व में आजादी के बाद जमींदारी उन्मूलन तथा हदबंदी के कानून लागू किए गए। इन कानूनों के जरिए छोटे जमींदारों और बड़े किसानों को शोषक बताकर, उन्हें बदनाम कर उनकी जमीन तो सीलिंग के दायरे में ला दी गयी। पर, बड़े जमींदारों को इससे बचाने के लिए इन कानूनों में अपवाद डाल दिये गए; यथा-चाय, रबड़, काफी, मसाले आदि के बागानों, गन्ने के फार्म, मत्स्य पालन के तालाबों को इन कानूनों से मुक्त रखा गया, इस बहाने की ऐसा करने से राष्ट्रीय उत्पादन में काफी गिरावट आ सकती है। ये बड़े जमींदार वर्चस्ववादी व सत्ताशाली लोग थे।
पर ऐसे अपवाद गलत थे। राष्ट्रीय उत्पादन प्रभावित ना हो इसके लिए सहकारी अथवा सरकारी खेती को सदस्य संख्या के अनुपात में भूमि के सामूहिक उपयोग की छूट देकर के ऐसा किया जा सकता था। वास्तव में एक आकार से अधिक बड़ी जमीनों पर भूमि मूल्य कर लगाकर भूमि के उपयोग की कुशलता को काफी बढ़ाया जा सकता है। भूसम्पदा मूल्य कर लगाने पर हदबंदी के कानून हटा दें। वैसे भी किसानों पर तो हदबंदी लागू हुई, पर उद्योगपतियों व अमीरों पर नहीं। भूसम्पदा मूल्य कर अमीरी रेखा का काम करेगी, गरीबी रेखा की भांति ।
नीतिसार है: मंहगी व बड़ी जमीनों (बेनामी या सनामी) पर सर्किल वैल्यू के 1% वार्षिक दर से भूसम्पदा मूल्य कर लगाया जाय।
3) बैंकिंग लेनदेनों पर नकद लेनदेनपर निर्धारित कर की अपेक्षा आधे या दो तिहाई के बराबर कर लगाया जा सकता है जैसा कि छोटे कारोबारियों के ऊपर आयकर निर्धारण के तौर पर हो चुका है।
ये तीन उपाय ही अर्थव्यवस्था की कुशलता को बढ़ाने के लिए काफी उपयोगी हैं ऐसे ही उपायों को अपनाकर खाड़ी के आठ देशों, दुबई, अबू धाबी आदि ने 10-15 वर्षों में उन्नति के मुकाम हासिल किए और इनहीं को हमें भी निष्ठापूर्वक अपनाना होगा। बचकाने उपायों से अर्थव्यवस्था को कोई निश्चित गति और दिशा नहीं मिलने वाली।
4)भाषाई आधार पर राज्यों के सन 1956 के पुनर्गठन को भंग कर नए सिरे से राज्यों व समाजों का पुनर्गठन कर समाजार्थिक व प्रशासनिक कुशलता वास्तविक अर्थों में बढ़ई जाय। उन्हीं इकाइयों को राज्य का दर्जा मिलना चाहिए जिसका आकार भारत के सम्पूर्ण भूक्षेत्र के 5% या सम्पूर्ण आबादी के 5% से कम न हो। किन्तु विविधता के समुचित सम्मान व उपयोग हेतु इससे कम आकार के समूहों को भावनात्मक-सांस्कृतिक विरासत व प्राकृतिक-भौगोलिक स्थिति व संभावनाओं तथा अपेक्षाओं के आधार पर पृथक पहिचान एवं स्वायत्त सामाजिक-आर्थिक नियोजन व विकास से तौर पर एक राज्य के भीतर अनेक समाजों का गठन कर दिया जाय। कश्मीर, जम्मू, हिमाचल, लद्दाख व उत्तराखंड (काजाहिलू) पर भी यही नीति चलेगी। धारा 370 को हटाने न हटाने से ज्यादा लाभ नहीं है। यह तो केवल सभी राज्यों को समान दृष्टि से देखने का जरिया है।
विविधताओं का ही उपयोग कर अमेरिका आज सभी पर हावी है। कुल मिलाकर विविधताओं का आदर और वैज्ञानिक उपयोग परोक्ष रूप से ही सही पर विकास-वृद्धि पर गहरा असर डालते हैं।
5) देश को मन्दिर – मस्जिद में उलझाने के बजाय विश्व जनमत को साथ लेकर ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ तथा मानव धर्म (भागवत धर्म) की ओर आगे बढ़े।
6) इस स्पष्ट जनादेश का सम्मान करते हुए राष्ट्रहित में बुलंद निर्णय लें।
7) हिंदू अविभाजित परिवार, हिन्दू उत्तराधिकार क़ानून, हिन्दू विवाह क़ानून जैसे भेदभावयुक्त सांप्रदायिक अवधारणाओं को बदला जाय। किसी भी तरफ के अतिवाद, कट्टरपन व सनक से बचें।
राष्ट्रभक्ति और राष्ट्र हित की बात करना या दिखावा करना एक बात है लेकिन राष्ट्र के विकास और राष्ट्रीय हितों को कुशलता से आगे बढ़ाना बिल्कुल अलग मामला है।
🎷यह मीडिया के लिए भी मौका है कि वह सरकारों को संकीर्ण मुद्दों में उलझाने के बजाय विकासमुखी बनने दे।
***जय भोजप्रान्त, जय भोजपुरी***
प्रोफेसर आर पी सिंह
प्रगतिशील भोजपुरी समाज

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