Tuesday 24 November 2015

असहिष्णु कौन है?

इस प्रश्न से अधिक प्रासंगिक है यह कि कौन कितना और कैसै असहिष्णु है। वास्तविकता यह है कि प्रत्येक संप्रदाय, हर मजहब में जो अतिवादी तत्व हैं, जो fanatics हैं, जो हर तरह से dogma का समर्थन या अपने वर्चस्व व स्वार्थ हेतु संरक्षण करते है असहिष्णुता का सृजन कमोबेश इन्हीं की देन होती है राजनीतिक व्यवस्था के प्रत्यक्ष या परोक्ष समर्थन के साथ।
प्रायः यह देखा गया है कि मुसलमान अपने समुदाय के प्रति जितना भाई-चारे का व्यवहार रखते हैं दूसरे समुदायों के प्रति मौके बेमौके, कभी खुले तो कभी छिपे तौर पर उतना ही असहिष्णु हो बैठते हैं। हिंदू इसका लगभग उल्टा ही है। वह दुनिया के सामने जितना सहिष्णु, जितना सज्जन, जितना अतिथि सत्कारी रहा है, अपने लोगों, अपने समुदाय के भीतर उतना ही असहिष्णु रहा विशेषकर निम्नतर जातियों व एक हदतक महिलाओं के प्रति भी; तथा उसकी इसी प्रवृत्ति ने उसे दुनिया के सामने आक्रामक नहीं होने दिया। आरक्षण के मुद्दे पर ही लीजिए। व्यवस्था की सारी अकुशता के लिए जिम्मेदार ठहराते हुए इसे मीडिया व जनमंचो पर हटाने की मांग करने वाले इस बात की अनदेखी करते हैं कि तमिलनाडु में १९२६ से आरक्षण रहा है और लम्बे समय से यह ७० फीसदी पर रहा है, और वह तमिलनाडु सामाजिक व आर्थिक हर प्रकार से अन्य राज्यों से काफी आगे है। अत: मैं पुनः कहूंगा कि आज का समय आरक्षण नहीं इसके जातीय आधार को हटाने का है।

पश्चिमी दुनिया इस्लामी जेहाद के हठवाद व इससे उपजे इस्लामी आतंकवाद को जानती है फिर भी बीमारी को नासूर बनने के बाद इलाज करने चली है। पर इस इस्लामी आतंकवाद से निपटने में पश्चिमी जगत निहित अन्तर्विरोधों के चलते अपने बल पर अक्षम साबित होना है भले ही वह कितना भी साधन सम्पन्न क्यों न हो। महाभारत की स्थापना हेतु निर्णायक युद्ध का आह्वान करने के बाद भगवान श्रीकृष्ण ने अपने भागवत धर्म में महाविश्व का सूत्र भी डाल दिया था। अब समय आ रहा है कि दुनिया भागवत धर्म तथा वसुधैव कुटम्बकम के पथ का अनुसरण करे। मानव सभ्यता का विकास, प्रगति व कल्याण सिर्फ मानवता तक रूकने में नहीं है वरन भगवत्ता में प्रतिष्ठित होने में है। इसके लिए डाग्मा आधारित मतों की महाविश्व के महासंग्राम में बलि देनी ही होगी भले ही उसमें हिन्दू मतों में भी निहित dogma व पाखंड ही क्यों न हो। सच्ची सहिष्णुता तो विज्ञान व टक्नालोजी का दर्शन व अध्यात्म के साथ संयोजन के द्वारा ही सम्भव है जिसका हल्का संकेत कभी आइंसटीन ने दिया था। विज्ञान व टक्नालोजी के उपकरण अधूरे भले ही हों पर वे अधिक विश्वसनीय हैं। बुद्धि, विवेक व अध्यात्म की मदद से ये अपनी आगे की दिशा भी खोजकर पूरी कर लेंगे ।

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