Sunday 13 June 2021

राज्य गठन पर नामकरण को लेकर जोश में होश न खोवें

 मीडिया में यह बात ज़ोर-शोर से उछल रही है कि इस चुनावी वर्ष में केंद्र सरकार उत्तर प्रदेश को तीन प्रदेशों में बांटने जा रही है--बुंदेलखंड, उत्तर प्रदेश और पूर्वांचल।  यदि यह सही है तो पूर्वांचल के नामकरण को लेकर यह ध्यान देना  बहुत ही आवश्यक है:

1) ‘भाषा भोजपुरी, राज्य पूर्वांचल' की नीति राष्ट्र एवं प्रदेश हित में ठीक नहीं है। राज्य का नाम पूर्वांचल रखने के बजाय भोजप्रांत, भोजभूमि, भोजखण्ड, भोजांचल या काशीराज होना उचित है। 

2) भोजपुरी के समर्थक और विरोधी दोनों ही भोजपुरी को भाषा में सीमित करने पर आमादा रहते हैं। पर भोजपुरी को भाषा का नहीं बल्कि इस क्षेत्र व जनता की संस्कृति, पहिचान, आत्मविश्वास तथा विकास का व्यापक मुद्दा बनाना जरूरी है । भाषा की आड़ में असली मुद्दे पीछे होते रहे हैं। 

3) राजधानी गोरखपुर या वाराणसी या अन्यत्र, जो उपयुक्त व पर्याप्त जगह लगे, बना सकते हैं। 

4)  भोजपुरी पहिचान व राज्य का मुद्दा अंतर्राष्ट्रीय संबन्धों के लिहाज से भी काफी रणनीतिक महत्व का है। नेपाल के 10 जिलों में (4 जिलों में खाँटी) भोजपुरी बोली जाती है। फिर मारिशश, सूरीनाम, फ़िजी आदि 14 देशों का सांस्कृतिक आधार ही भोजपुरी है, भाषा भले ही कुछ भी हो। अतः भोजपुरी भारत की अंतर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठा का महत्वपूर्ण घटक है। राज्य गठन में इस पहलू की उपेक्षा मूर्खता है। इन देशों की भावनात्मक विरासत को मान्यता व प्रोत्साहन देने से इन देशों का लगाव व समर्थन बढ़ेगा जो भारत के लिए लाभकारी है। यह सुविधा राज्य का पूर्वाञ्चल नाम रखने में बिलकुल नहीं है।

5) बिहार में भी एनडीए के घटक दल की ही सरकार है। बिहार के 09 भोजपुरी पहिचान वाले जिलों को इस भोजपुरी राज्य में शामिल किया जाना चाहिए।    इन जिलों की जनता तो भोजपुरी राज्य में शामिल होने को तैयार रही है। दूसरी ओर इलाहाबाद व आसपास के क्षेत्र अलग पहिचान रखते हैं अतः उन्हें पश्चिमी अंचल या उत्तर प्रदेश में ही रहने देना ठीक रहेगा।              

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प्रोफेसर रवि पी सिंह

दी द उ गोरखपुर विश्वविद्यालय एवं केन्द्रीय प्रशिक्षण सचिव, प्रगतिशील भोजपुरी समाज

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